महाराष्ट्र: कोविड-19 के कहर से कई परिवार हुए बेसहारा, मरने वालों में ज्यादातर पिता

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कोविड की लहर भले ही समुद्री ज्वार की तरह उतर गई है लेकिन अब इसने पीछे जो बरबादी के निशान छोड़े हैं, वे साफ नजर आने लगे हैं. महामारी के दो साल बाद महाराष्ट्र के महिला एवं बाल विकास विभाग के डेटा से चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है.

राज्य में बच्चों के हर 10 अभिभावकों की मौत की घटना में से 9 मामलों में पिताओं की मौत हुई है. मार्च 2020 में जब महामारी की शुरुआत हुई, तब से राज्य के करीब 28938 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खोया है. मरने वालों में जहां 2,919 माताएं थीं, वहीं पिताओं की संख्या करीब 25,883 थी.

इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक 136 मामलों में एक ही परिवार के एक से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक मार्च 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच महाराष्ट्र में 1,39,007 मौतें दर्ज हुईं. जिसमें 92,212 पुरुष (66.3 फीसद) और 46,779 महिलाएं (33.6 फीसद) थीं. आज की तारीख तक महाराष्ट्र में होने वाली मौतों की संख्या 1,48,404 है. जो भारत के सभी राज्यों में सर्वाधिक है, इसके बाद केरल (71,477) का नंबर आता है. महामारी विज्ञान से जुड़ी दुनिया भर की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों के बीमार पड़ने और मृत्यु की दर ज्यादा थी. इसके पीछे प्रतिरोधक क्षमता में अंतर और जीवनशैली जैसी कईं वजहें थीं. इस वजह से महामारी के दौरान कई परिवारों में बड़ा नुकसान हुआ.

खासकर उन परिवारों में जहां कमाने वाला महज पुरुष था, वहां आर्थिक रूप से बहुत अस्थिरता पैदा हो गई है. सरकार ने अपनी तरफ से कदम उठाए और लोगों को मुआवजा भी मिला है. लेकिन 50,000 रुपये की रकम से कोई परिवार सिर्फ बच्चों की फीस चुका पाया और कोई दूसरी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर पाया. लेकिन भविष्य अभी भी अंधकार में है. हालांकि सरकार का मुआवजे को लेकर कहना है कि कोविड से जुड़ी अनुग्रह राशि देने में परेशानी इसलिए भी हो रही है, क्योंकि ज्यादातर लोगों के पास दस्तावेजों की कमी है. कई मामलों में वह खुद को मरने वाले का उत्तराधिकारी साबित नहीं कर पाए. वहीं राज्य राहत और पुनर्वास विभाग का कहना है कि हमें कई मामलों में एक व्यक्ति की मौत पर दो आवेदन हासिल हुए हैं. एक पत्नी की ओर से और दूसरा मरने वाले के माता-पिता की तरफ से.

इस वजह से भी अनुग्रह राशि आवंटित करने में परेशानी का सामना करना पड़ा. महामारी के दौरान विधवा हुई महिलाओं के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन का कहना है कि ज्यादातर मामलों में खासकर ग्रामीण क्षेत्रो में पति अपनी पत्नी का नाम बैंक या संपत्ति में उत्तराधिकारी के तौर पर जोड़ता ही नहीं है. इस वजह से आगे चलकर परेशानी खड़ी होती है. इसके अलावा ऐसे करीब 851 मामले थे, जहां बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया. इस तरह अनाथ हुआ बच्चों के नाम पर 5 लाख रुपये फिक्स डिपॉजिट किया गया है. इसके अलावा उन्हें 1125 रुपये मासिक भत्ता भी प्रधानमंत्री केयर के तहत दिया जाना तय हुआ है. कोविड में अनाथ हुए बच्चे जब 23 साल के होंगे, तो उनके बैंक अकाउंट में 10 लाख रुपये होंगे.

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