एयरक्राफ्ट कैरियर की फौज पर इतरा रहा चीन, अब होगी ड्रैगन की बोलती बंद, नेवी ने तैयार किया सबमरीन प्लान
चीनी नौसेना नंबर के हिसाब से दुनिया में सबसे बड़ी है और ये तेजी से अपना आकार बढ़ा रही है. तीन एयरक्राफ्ट कैरियर उसके पास मौजूद है और वो चौथे सुपर कैरियर की तैयारी कर चुका है.
अभी नहीं लेकिन अगले 2-3 साल के अंदर ये एयरक्राफ्ट कैरियर हिंद महासागर क्षेत्र में भी दिखाई दे सकते हैं. सबमरीन और जंगी जहाज तो इस इलाके से होकर गुजरते ही हैं. लिहाजा एयरक्राफ्ट कैरियर और वॉरशिप का सबसे बड़ा किलर यानी सबमरीन की ताकत भारतीय नौसेना युद्ध स्तर पर बढ़ा रही है.
दुनिया में फिलहाल तीन तरह के सबमरीन है. पहला डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन है. फिलहाल भारत के पास 16 डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन और 1 बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन है, जिसमें 1 बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर सबमरीन (SSBN) INS अरिहंत तो सूत्रों के मुताबिक दूसरी अरिघात का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है और जल्द वो भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा. सूत्रों की माने तो भारतीय नौसेना को उनकी न्यूक्लियर पॉवर्ड अटैक सबमरीन (SSN) की मंजूरी भी सरकार से मिल सकती है.
बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर सबमरीन की खासियत
बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर सबमरीन से पहले समझना होगा कि न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन क्या होती है. जैसे की नाम से ही समझ में आ रहा ही कि वो सबमरीन जो की परमाणु उर्जा से ऑपरेट करती हो. भारत के पास बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर सबमरीन तो है लेकिन अभी तक भारतीय नौसेना के पास कोई न्यूक्लियर पावर्ड अटैक सबमरीन (SSN) नहीं है. डीज़ल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन भारत के पास मौजूद है लेकिन अगर इन दोनो में फर्क की बात करें तो इसमें जमीन आसमान का अंतर है. सबमरीन बनाई ही गई है पानी में गोता लगाने के लिए और पानी के अंदर छिपकर जितनी देर तक रहें, दुश्मन की नजर से भी बचा जा सके और दुश्मन पर अचानक हमला भी किया जा सके.
50 दिन समुद्र के अंदर रह सकती है ये सबमरीन
मौजूदा पारंपरिक डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन को चलाने के लिए बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है और बैटरी चार्ज करने के लिए सबमरीन को पानी की सतह पर आना होता है. यानी की 2 से 4 दिन के अंदर डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन को सतह पर आना ही होगा. ऐसे में किसी बड़े लंबे अंडर वॉटर ऑपरेशन में थोड़ी दिक़्कत होती है लेकिन न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन के पास सतह पर आने की ऐसी कोई मजबूरी नहीं. ये लंबे समय तक पानी के अंदर डाइव लगा सकती है. कितने दिन तक होगा ये पावर पर नहीं बल्कि उस सबमरीन को ऑपरेट करने वालों के नौसैनिकों की क्षमता पर निर्भर करता है. ये 50 दिन से ज्यादा पानी के अंदर रह सकती है.
बैट्री जार्च करने की जरूरत ही नहीं
चूंकि न्यूक्लियर रियेक्टर के जरिए बनी उर्जा से चलती है तो उसे बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर आने की जरूरत ही नही. जानकारी के मुताबिक अरिहंत क्लास सबमरीन लाइट वाटर न्यूक्लियर रियेक्टर से लेस है. अरिहंत क्लास सबमरीन एक न्यूक्लियर पावर्ड बैलेस्टिक मिसाइल सबमरीन (SSBN) है, जो कि एडवांसड टेक्नॉलजी वेसेल ( ATV ) प्रोजेक्ट के तहत इसका निर्माण 2004 में शुरू हुआ था और 5 साल बाद 2009 में इसका सी लॉन्च हुआ और लंबे समुद्री परिक्षण के बाद साल 2016 में इसे कमीशन कर दिया गया. अरिहंत की खासियत की बात करें तो ये 110 मीटर लंबा और 11 मीटर चौड़ा है.
700 KM दूर तक लगा सकती है निशाना
अरिहंत क्लास सबमरीन पानी के अंदर 24 नॉटिकल मील प्रतिघंटा की रफ़्तार से मूव कर सकती है और इसकी रेंज अनलिमिटेड है. इसमें 700 किलोमीटर मार करने वाली 12 K-15 सबमरीन लॉन्च बैलेस्टिक मिसाइल है, जो न्यूक्लियर कैपेबल निर्भया मिसाइल को ऑपरेट कर सकती है. साथ ही यह 6 टॉरपीडो भी लेकर डाइव लगा सकती है. जानकारी के मुताबिक ATV प्रोजेक्ट के तहत कुल 4 बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन बनाने का प्लान था, जिसमें से अरिहंत पहले आ चुकी है और माना जा रहा है इसी सीरीज की दूसरी अरिहंत क्लास सबमरीन, जिसका नाम अरिघात है वो भी जल्द भारत की ताकत को बढ़ाने के लिए तैयार रहेगी. रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में अरिघात को लॉन्च किया गया था और सूत्रों की मानें तो सी ट्रायल को पूरा करने के बाद ये कमिशन के लिए तैयार है. अरिघात अरिहंत से थोड़ा और ज़्यादा घातक होगी. इसके अलावा अरिहंत क्लास की बाकी 2 सबमरीन S-3, S-4 का निर्माण भी जारी है. न्यूक्लियर सबमरीन के बेड़े में इसके अलावा भारतीय नौसेना को भी न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन (SSN) के निर्माण की मंजूरी मिलने की उम्मीद है.
सरकार दे सकती है मंजूरी
सूत्रों के मुताबिक सरकार इसी साल स्वदेश में ही न्यूक्लियर सबमरीन निर्माण के लिए मंजूरी दे सकती है. नेवी के पास फ़िलहाल एक भी न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन नहीं है. SSBN यानी बैलेस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर सबमरीन और SSN यानी न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन के प्रोपल्शन का सोर्स न्यूक्लियर रियेक्टर ही है लेकिन SSBN साइज में SSN से बड़ी है और उसी के तहत उसके रियेक्टर, साइज और डिज़ाइन अलग अलग हैं. नौसेना को उम्मीद है कि दो SSN की मंज़ूरी सरकार की तरफ़ से मिल सकती है.
नौसेना की सबमरीन फ्लीट की ताकत
भारतीय नौसेना अपने पुरान हो रही पनडुब्बियों की फ्लीट के रिप्लेसमेंट के लिए बड़ी तेजी से आगे कदम बढ़ा रही है. उसी के मद्देनजर प्रोजेक्ट 75 के तहत भारत को 3 नई सबमरीन मिलने का रास्ता साफ हो गया है. अगर हम भारतीय नौसेना से सबमरीन प्लान के बारे में बात करें तो भारतीय नौसेना ने अंडर वॉटर ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए सबमरीन की तरफ फ़ोकस करना काफी लंबे समय से शुरु कर दिया था. साल 1997 में भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने अपने सबमरीन प्रोग्राम को प्रोजेक्ट 75 के तहत 24 सबमरीन प्लान को आगे बढाया लेकिन 1999 में कार्गिल युद्ध के बाद CCS ने अगले 30 साल के सबमरीन बिल्डिंग प्लान के तहत पुराने प्रोजेक्ट 75 को नए प्लान को प्रोजेक्ट 75 इंडिया के तहत आगे बढाया, जिसमें दो प्रोडक्शन लाइन में इन पनडुब्बियों के निर्माण को जारी रखा जाने पर काम शुरु कर दिया गया. अब तकनीक के आदान प्रदान के चलते भारत में ही पनडुब्बियों का निर्माण हो रहा है.
मझगांव डॉक लिमिटेड को 6 पनडुब्बी बनाने का जिम्मा
भारत ने फ्रांस के नेवल ग्रुप के साथ साल 2005 में प्रोजेक्ट 75 प्रोग्राम के तहत 6 सेकॉर्पीन सबमरीन का करार किया. टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तरह मझगांव डॉक लिमिटेड शिपबिल्डर्स लिमिटेड को 6 पनडुब्बियों के निर्माण का जिम्मा मिला … अब तक इस करार के तहत 6 में से 5 पनडुब्बियों को भारतीय नौसेना में शामिल किया जा चुका है जिसमें स्कॉर्पीन क्लास की पहली पनडुब्बी कलवरी दिसंबर 2017 में भारतीय नौसेना में शामिल हुई. इसके बाद सितंबर 2019 में दूसरी पनडुब्बी खंडेरी, फिर मार्च 2021 मे करंज, नवंबर 2021 में वेला और इसी साल जनवरी 2023 में इस क्लास की पनडुब्बी वगीर पनडुब्बी नौसेना में शामिल की गई. स्कॉर्पीन क्लास की छठी और आख़िरी पनडुब्बी वगशीर इस वक्त अपने समुद्री परीक्षण पर है और माना जा रहा है कि इसी साल 2024 आधिकारिक तौर पर ये भारतीय नौसेना में शामिल हो जाएगी.
दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगाने का दम
स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन की बात करें तो ये एक अटैक सबमरीन है ये आधुनिक फीचर्स से लैस है. यह दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगा सकती है. इसके साथ ही टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से भी हमला कर सकती है. किसी भी अत्याधुनिक सबमरीन की तरह ही इससे ऐंटी सरफेस और ऐंटी सबमरीन, खुफिया सूचनाएं जुटाना, माइन बिछाना, इलाके की निगरानी करना जैसे कई मिशनों को अंजाम दिया जा सकता है. चूकिं ये प्रोग्राम पहले से ही चल रहा है लिहाजा भारत अपनी सबमरीन की संख्या को टू फ़्रंट वॉर की आशंकाओं के मद्देनजर पुरानी हो चली सबमरीन के फेज आउट होने से पहले ही नई सबमरीन को अपने बेड़े में शामिल कर लेना चाहता है. लिहाजा 3 अतिरिक्त स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन की फॉलो ऑन ऑर्डर को प्रोजेक्ट 75 के तहत इसका निर्माण किया जाना है.
प्रोजेक्ट 75- इंडिया के तहत 6 नई सबमरीन
नौसेना के लंबे वक्त से अटके पड़े प्रोजेक्ट-75 इंडिया ने भी अब कुछ रफ्तार पकड़ी है. इस प्रोजेक्ट के तहत भारतीय नौसेना को 6 नई सबमरीन मिलनी हैं. ये सबमरीन भी डीजल इलेक्ट्रिक सबमरीन ही होगी लेकिन नई AIP तकनीक से लेस. AIP यानी एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन. इस तकनीक में सबमरीन लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती है. कम से कम 7 दिन से लेकर 15 दिन तक इसे सतह पर आने की जरूरत नही है. ये एक नॉन न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन है, जो कि लंबे समय तक पानी की अंदर रह सकती है लेकिन AIP को चार्ज करने के लिए हार्बर पर जाना ही होगा. हालांकि नॉर्मल डाइव वो सतह पर आकर बैटरी चार्ज कर के सामान्य डीजल इलेक्ट्रिक पावर्ड सबमरीन की तरह से ही अंजाम दे सकेगा.
भारतीय नौसेना की मौजूदा स्थिति
चीन ने अपने ऑल वेदर फ्रेंड पाकिस्तान को AIP तकनीत से लेस सबमरीन दी है. बहरहाल अगर हम भारतीय नौसेना के इस वक्त की सबमरीन के बेड़े की बात करें तो फिलहाल नौसेना के पास एक अरिहंत न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन है और 16 कनवेशनल सबमरीन है जिसमें 7 रशियन किलो क्लास , 4 HWD जर्मन और 5 फ़्रैंच स्कॉरपीन क्लास सबमरीन हैं. इनमें किलो क्लास और HWD सबमरीन पुरानी हो चली है और नौसेना को जब तक नई सबमरीन नहीं मिल जाती, तब तक इनका इस्तेमाल करते रहेगा.