किसान आंदोलन पड़ा ठंडा? क्या आपसी फूट से बिगड़ा खेल… ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ डटे हैं किसान लेकिन…
किसान आंदोलन 2.0 को 22 दिन पूरे हो चुके हैं. हरियाणा पंजाब की सीमा पर हज़ारों ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के साथ किसान डटे हुए हैं. बीच-बीच में ‘दिल्ली कूच’ का नारा सुनाई देता है, लेकिन 13 फ़रवरी और 21 फ़रवरी को हिंसा के बाद ट्रैक्टर ट्रॉलियों से दिल्ली कूच न करने के बजाय अब किसान नेताओं ने बिना ट्रैक्टर ट्रॉलियों के ही दिल्ली पहुँचने का आह्वान किया है.
किसान नेता सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा है कि हरियाणा-पंजाब सीमा पर बैठे किसानों के अलावा दूसरे राज्यों के किसान 6 मार्च को बिना ट्रैक्टर ट्रॉली के दिल्ली कूच करें. साथ ही 10 मार्च को चार घंटे के लिए पूरे देश में ‘रेल रोको आंदोलन’ का भी आह्वान किया गया है.
मौजूदा किसान आंदोलन की कमान संभाल रहे संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा के दोनों नेताओं ने साफ़ कर दिया है कि अब चाहे लोक भा चुनाव के चलते आचार संहिता ही क्यों ना लग जाए आंदोलन ख़त्म नहीं होगा. इस लेख में आप समझेंगे कि आख़िर क्या वजह है कि ट्रैक्टर ट्रॉलियों के साथ दिल्ली जाने पर आमादा रहे किसान संगठन अब हरियाणा पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों के किसानों से बिना ट्रैक्टर ट्रॉली दिल्ली कूच करने की बात कर रहे हैं? साथ ही आप जानेंगे कि केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच अड़चन कौन पैदा कर रहा है.
पांचवें दौर की बातचीत के लिए किसान केंद्र के सामने क्यों नहीं गए?
21 फ़रवरी को जब पहले से तय दिल्ली कूच को अंजाम दिया जा रहा था, सुबह साढ़े 10 बजे के क़रीब पंजाब पुलिस के एक अधिकारी किसान नेता सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल के पास पहुँचे. पुलिस अधिकारी ने दोनों किसान नेताओं को बताया कि केंद्र सरकार एक बार फिर यानी पांचवें दौर की बातचीत करना चाहती है. किसान नेताओं ने पुलिस अधिकारी से कहा कि हम आपकी बात पर भरोसा कैसे करें क्योंकि आप किसान-केंद्र सरकार के अलावा तीसरी पार्टी (पंजाब पुलिस) हैं.
तय हुआ कि किसान नेताओं को पांचवें दौर की बैठक को लेकर भरोसा दिलाने के लिए कृषि मंत्री ट्वीट करेंगे. किसान नेताओं ने काग़ज़ पर लिखकर बताया कि कृषि मंत्री उनके कहे के हिसाब से ट्वीट करें तो वे पांचवें दौर की बातचीत के लिए तैयार हैं. किसान नेताओं को भरोसा दिलाने के लिए बकायदा कृषि मंत्री ने X (पहले Twitter) पर लिखा, “सरकार चौथे दौर के बाद पांचवें दौर में सभी मुद्दे जैसे की MSP की माँग, crop diversification, पराली का विषय, FIR पर बातचीत के लिए तैयार है. मैं दोबारा किसान नेताओं को चर्चा के लिए आमंत्रित करता हूँ. हमें शांति बनाये रखना जरूरी है.”
किसान नेताओं की तरफ़ से मांग की गई थी कि पहले सरकार बैठक का एजेंडा तय करें और एजेंडे में ‘MSP गारंटी क़ानून को लेकर समाधान निकालेंगे’ विषय को शामिल करें, लेकिन कृषि मंत्री ने अपने ट्वीट में सिर्फ़ ‘MSP की माँग’ मुद्दे का ज़िक्र किया और यही वजह है कि सरकार और किसान नेताओं के बीच चार दौर की बैठक तक चला सकारात्मक संवाद टूट गया, किसान नेता पांचवें दौर की बैठक के लिए नहीं गए.
किसान नेताओं से बातचीत करने के लिए 3 केंद्रीय मंत्रियों का 4 बार चंडीगढ़ जाना एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा था लेकिन किसान नेताओं ने जिस तरीक़े से पांचवें दौर की बातचीत के ऑफ़र को ठुकराया, उससे यह सवाल भी खड़ा हुआ कि जब सरकार बातचीत करने के लिए तैयार है तो फिर किसान नेताओं की अपनी ज़िद कितनी सही है, क्योंकि जब बैठक ही नहीं होगी तो फिर समाधान कैसे निकलेगा. हालाँकि, किसान नेता मानते हैं कि सरकार बातचीत करने आती है, बैठक में अलग रवैया होता है और जब मीडिया के सामने मंत्री बयान देते हैं तो वे कुछ और कहते हैं.
…तो अब नहीं होगा दिल्ली कूच?
21 फ़रवरी को शम्भू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर पर भारी तनाव देखा गया. इसी तनाव और हिंसा के बीच 21 साल के शुभकरण सिंह की मौत हो गई, हरियाणा पुलिस पर आरोप लगे हैं कि पुलिस की गोली से शुभकरण सिंह की जान चली गई. शुभकरण सिंह को न्याय दिलाने की माँग और आंदोलन में हरियाणा पुलिस और किसानों की तरफ़ से हुए बवाल की समीक्षा करने के लिए किसान नेताओं ने ‘दिल्ली कूच’ टालने का ऐलान किया, जिसके बाद से अब तक किसान हरियाणा-पंजाब की सीमा पर डटे हुए हैं.
21 फ़रवरी के दिन दिल्ली कूच की कॉल के चलते हr शम्भू बॉर्डर पर इतनी ज़्यादा संख्या में किसान और प्रदर्शनकारी पहुँचे कि दोनों संगठनों के नेताओं और वॉलंटियर के कंट्रोल से चीज़ें बाहर चली गईं, किसान नेता पंढेर और डल्लेवाल द्वारा कई बार समझाए जाने और अपील के बावजूद भी भीड़ का एक हिस्सा हिंसा करने और दिल्ली कूच करने पर अड़ा रहा.
शुभकरण सिंह की मौत के बाद किसान नेताओं के मन में एक तरफ़ डर ये है कि जिस भरोसे के साथ वे गांवों से युवाओं को अपने साथ लाए हैं, अगर शुभकरण की तरह किसी के घर का चिराग बुझा तो वे उनके माता पिताओं को जवाब कैसे देंगे. और किसान नेता लगातार ये दावा करते रहे हैं कि उनके आंदोलन की आड़ में कुछ लोग हिंसा भड़काने के साथ-साथ अपने ग़लत मंसूबों को अंजाम देना चाहते हैं. ऐसे में किसान नेताओं के करीबियों का मानना है कि वे किसी भी हाल में इस दाग को अपने या किसान आंदोलन के ऊपर नहीं लगने देना चाहते. इन्हीं मुख्य वज़हों के चलते अब किसान नेता दो राह पर आगे बढ़ने के ज़रिये तलाश रहे हैं कि कैसे शांत पड़े आंदोलन को धार दी जाए और कैसे सरकार के साथ नए सिरे से बातचीत शुरू की जाए.
किसान आंदोलन का आगे क्या होगा
किसान आंदोलन 2.0 की अगुवाई संयुक्त किसान मोर्चा (ग़ैर राजनैतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा कर रहे हैं, किसान नेताओं का दावा है कि इन दो संगठनों के बैनर तले क़रीब 200 ज़्यादा किसान जत्थेदारियां शामिल हैं. साल 2020 में शुरू हुए किसान की अगुवाई संयुक्त किसान मोर्चा कर रहा था. इसके बाद यह मोर्चा दो फाड़ में बंट गया. एक फाड़ पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों में उतरा तो दूसरे ने ख़ुद को राजनीति से दूर रखा. मौजूदा किसान आंदोलन की रफ़्तार धीमी हो जाने के पीछे भी एक बड़ी वजह किसान संगठनों में आपसी समन्वय और एकजुटता न होना भी बताया जा रहा है.
इस बात को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक प्रसंग का ज़िक्र बहुत ज़रूरी है, सरकार ने मौजूदा आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनैतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा के सामने 5 फसलों पर MSP गारंटी का प्रस्ताव रखा. किसान नेताओं ने कहा कि हमें एक दिन का समय चाहिए और हम किसान नेताओं और संगठनों से बातचीत कर सरकार के प्रस्ताव पर अपने विचार रखेंगे. मौजूदा आंदोलन से जुड़े नेता अपना फ़ैसला सरकार और मीडिया के सामने रख पाते उससे पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने एक प्रेस रिलीज़ जारी कर सरकार के 5 फ़सल पर MSP गारंटी वाले प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
इस क़दम के ज़रिये संयुक्त किसान मोर्चा मौजूदा आंदोलन संभाल रहे किसान नेताओं के ऊपर दबाव बनाना चाहता था हालाँकि संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनैतिक) और किसान मज़दूर मोर्चा सरकार के प्रस्ताव को सिरे से नकारना नहीं चाहते थे, वे सरकार से और मोलभाव के मूड में थे, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा बने दबाव के चलते नतीजा यह हुआ कि सभी किसान संगठनों को एक सुर में सरकार के प्रस्ताव को ठुकराना पड़ा. इसीलिए किसान संगठनों में एकजुटता न होने और आपसी मतभेदों के चलते मौजूदा आंदोलन धीमा पड़ गया.
स्थिति यह पैदा हो गई है कि संयुक्त किसान मोर्चा ने 1 मार्च को मौजूदा आंदोलन संभाल रहे नेताओं के सामने एक 8 सूत्रीय प्रस्ताव रखा है कि मतभेदों को भुलाकर कैसे दो साल पहले की तरह संयुक्त किसान मोर्चा को खड़ा किया जा सकता है लेकिन किसान नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते फ़िलहाल संयुक्त किसान मोर्चा का फिर से खड़ा होना नामुमकिन दिखाई देता है.