पितरों की नाराजगी को पहचानने के ये हैं संकेत, जानें शांति के उपाय..

ऐसे पहचानें अपने पितरों की नाराजगी : ये हैं उन्हें प्रसन्न कर आशीर्वाद पाने के उपाय

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हिंदू धर्म में हमारे मृत पूर्वजों को पितृ कहा जाता है। मान्यता के अनुसार इनका एक अलग लोक होता है, वहीं हर साल एक निश्चित समय के लिए पृथ्वी पर आकर अपनी भावी पीढ़ी को देख कर प्रसन्न या दुखी होते हैं। पितरों की इस दुनिया को लेकर लोगों में हमेशा उनके प्रति जिज्ञासा बनी रहती है।

हिंदू धर्म में हमारे मृत पूर्वजों को पितृ कहा जाता है। मान्यता के अनुसार इनका एक अलग लोक होता है, वहीं हर साल एक निश्चित समय के लिए पृथ्वी पर आकर अपनी भावी पीढ़ी को देख कर प्रसन्न या दुखी होते हैं। पितरों की इस दुनिया को लेकर लोगों में हमेशा उनके प्रति जिज्ञासा बनी रहती है।

हमारी ही पूरानी पीढ़ी होने के कारण जहां दोनों ओर अपनों को लेकर लगाव होता है, वहीं पृथ्वी में रहने वालों में इस समय सबसे बड़ी जिज्ञासा यही लेकर होती है कि कहीं वे यानि हमारे पितर हमसे नाराज तो नहीं हैं?

इन बातों के संबंध में डॉ. आचार्य पारुल चौधरी जी का कहना है कि दरअसल पितृ हमारे पूर्वज होने के कारण उनका ऋण हमारे ऊपर है, इसका कारण यह है कोई ना कोई उपकार उन्होंने हमारे जीवन के लिए अवश्य किया है। वहीं यदि पितृ लोक की बात करें तो धर्म शास्त्रों के अनुसार मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक और उसके ऊपर सूर्य लोक और उससे भी ऊपर स्वर्ग लोक है।

पितृ दोष : पितरों क्यों होते है हमसे नाराज?

पितरों की नाराजगी का कारण आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गई गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि सहित कई अन्य कारणों से भी हो सकता है। जिसके कारण हम या हमारे अपने पितृ दोष के भागी बन जाते हैं। पितृ दोष को एक अदृश्य बाधा के रूप में माना जाता है। जो पितरों के रुष्ट होने के कारण उत्पन्न होती है।

मान्यता के अनुसार इनका एक अलग लोक होता है, वहीं हर साल एक निश्चित समय के लिए पृथ्वी पर आकर अपनी भावी पीढ़ी को देख कर प्रसन्न या दुखी होते हैं। पितरों की इस दुनिया को लेकर लोगों में हमेशा उनके प्रति जिज्ञासा बनी रहती है।

हमारी ही पूरानी पीढ़ी होने के कारण जहां दोनों ओर अपनों को लेकर लगाव होता है, वहीं पृथ्वी में रहने वालों में इस समय सबसे बड़ी जिज्ञासा यही लेकर होती है कि कहीं वे यानि हमारे पितर हमसे नाराज तो नहीं हैं?

साथ ही हर कोई ये भी जानना चाहता है कि यदि हमारे पितृ हमसे नाराज हैं तो भी हम यह कैसे जान सकते हैं कि वे हमसे नाराज हैं और हैं तो क्यों? इसके अतिरिक्त हम उन्हें कैसे प्रसन्न कर सकते हैं?

पितृ दोष : पितरों क्यों होते है हमसे नाराज?

पितरों की नाराजगी का कारण आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गई गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि सहित कई अन्य कारणों से भी हो सकता है। जिसके कारण हम या हमारे अपने पितृ दोष के भागी बन जाते हैं। पितृ दोष को एक अदृश्य बाधा के रूप में माना जाता है। जो पितरों के रुष्ट होने के कारण उत्पन्न होती है।

पितृ दोष कैसे करता हैं परेशान…

पितृ दोष के संबंध में माना जाता है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है वह मानसिक अवसाद,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना,व्यापार में नुकसान, विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, कॅरिअर में समस्याएं या यूं कहे कि व्यक्ति और उसके परिवार को जीवन के हर क्षेत्र में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी उनके शुभ फल नहीं मिल पाते। माना जाता है कि इस दौरान कितनी भी पूजा पाठ, देवी, देवताओं की अर्चना की जाए,उनका पूरा शुभ फल प्राप्त नहीं हो पाता।

लक्षण: पितृ आपसे रुष्ट हैं

पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्‍य लक्षण होते हैं, जो इस प्रकार माने गए हैं-

1. खाने में बाल : कई बार यदि खाना खाते समय आपके भोजन में से बाल निकलता है तो तुरंत सतर्क हो जाएं, क्योंकि इसे पितृदोष के लक्षण के रूप में माना जाता है। परिवार में कई बार किसी एक ही सदस्य के साथ ऐसा होता है कि उसके खाने में से बाल निकलता है।

यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि उस व्यक्ति के रेस्टोरेंट आदि में जाने पर भी वहां उसके खाने में से बाल निकलता है। वहीं परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।

2. दुर्गंध आना : कुछ लोगों के घर से दुर्गंध आती है, लेकिन कहां से आ रही है ये पता नहीं चलता। हफर कुछ समय बाद कई बार उन्हें इस दुर्गंध का पता चलना ही बंद हो जाता है, लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है, ऐसे में इस स्थिति को भी पितृदोष के लक्षण में माना गया है।

3. स्वप्न में बार बार पूर्वजों का आना : अपने सपने में लगातार अपने पूर्वजों को देखना, या सपने में आकर पूर्वजों का हमारी ओर कुछ इशारा करना भी पितृ दोष का ही लक्षण माना जाता है।

4. शुभ कार्य में अड़चन : आप कोई त्यौहार या कोई उत्सव मना रहे हैं कि तभी ऐसा कुछ घटित हो जिससे रंग में भंग वाली स्थिति बन जाए। तो ऐसे में खुशी का माहौल बदल जाता है। माना जाता है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों के असंतुष्ट होने का संकेत माना जाता है।

5. शुभ कार्य में अड़चन : आप कोई त्यौहार या कोई उत्सव मना रहे हैं कि तभी ऐसा कुछ घटित हो जिससे रंग में भंग वाली स्थिति बन जाए। तो ऐसे में खुशी का माहौल बदल जाता है। माना जाता है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों के असंतुष्ट होने का संकेत माना जाता है।

6. घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना :

किसी परिवार में किसी व्यक्ति के काफी उम्र होने के बाद भी विवाह नहीं हो पाना अच्‍छा संकेत नहीं माना जाता है। उस घर में यदि किसी कुंवारे व्यक्ति की पहले मृत्यु हो चुकी है तो ऐसी स्थिति को भी पितृ दोष से जोड़कर देखा जाता है।

7. प्रॉपर्टी की खरीदने में परेशानी :

कई बार एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी एक हिस्सा कई कोशिशों के बाद भी नहीं बिक नहीं पाता। कोई खरीदार मिलने पर भी बात नहीं बनती। यहां तक की अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है।

इस तरह की स्थिति लंबे समय चलने पर यह मान लिया जाता है कि इसका कारण कोई ऐसी कोई अतृप्‍त आत्‍मा है जिसका इस भूमि या जमीन के टुकड़े से जुड़ाव रहा हो।

8. संतान ना होना :

कई बार मेडिकल रिपोर्ट पूरी तरह से ठीक होने के बावजूद लोग संतान सुख से वंचित रह जाते है। भले ही आपके पूर्वजों का इससे संबंध होना जरूरी नहीं है लेकिन, ऐसा होना इस ओर भी इशारा करता है कि जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है।

पितरों की शांति के 3 आसान उपाय

1- इसके उपायों के तहत षोडश पिंड दान,विष्णु मन्त्रों का जाप, सर्प पूजा, ब्राह्मण को गौ-दान सहित कन्या -दान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर परिसर में पीपल, बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना आदि करना असैा प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना शामिल है।

2- वेदों और पुराणों में दिए गए पितरों की संतुष्टि के मंत्र, स्तोत्र और सूक्तों का नित्य पठन भी पितृ बाधा को शांत करते है। कई बार इनका समय की कमी या अन्य कारणों से नित्य पठन संभव नहीं हो पाता, ऐसे में इनका पाठ कम से कम हर माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या यानि पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए। यहां ये भी जान लें कि कुंडली में जिस भी प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना चाहिए।

3- भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठकर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर ” ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।” मंत्र की एक माला का हर रोज एक निश्चित समय पर जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत हो जाते हैं, वहीं यह मंत्र शुभत्व भी प्रदान करता है।

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