CBI जांच के लिए मंजूरी नहीं देने वाले राज्य सरकारों पर SC को टिप्पणी, कही यह बात

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सुप्रीम कोर्ट मे बुधवार को उन राज्य सरकारों पर टिप्पणी की है, जो सीबीआई जांच के लिए मंजूरी नहीं देती है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सीबीआई को सहमति देने से इनकार कर रहे हैं। यह राजनीतिक या प्रशासनिक हो सकता है, हम नहीं जानते। लेकिन हम उस स्थिति से बेखबर नहीं हो सकते हैं।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने जब्ती, जांच और अपराध की आय की कुर्की के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उपलब्ध शक्तियों के व्यापक दायरे को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य यदि ऐसे अपराधों से निपटने के लिए “कठोर फॉर्मूला” लागू किया जाता है, तो पीएमएलए जैसे कानून को लागू करना विफल हो जाएगा।

कोर्ट 2005 के पीएमएलए अधिनियम के तहत “अपराध की आय” की परिभाषा पर एक याचिका में उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी द्वारा दिए गए एक तर्क का जवाब दे रहा था, जो कि इसके अर्थ के भीतर भी शामिल है, यहां तक ​​कि उन संपत्तियों को भी, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। पीएमएलए के तहत अपराधों की अनुसूची में उल्लिखित कानून के तहत दंडनीय किसी अन्य आपराधिक गतिविधि के हिस्से के रूप में प्राप्त किया गया हो सकता है। ईडी के लिए कदम उठाना और अपनी जांच शुरू करना एक गंभीर अपराध बन जाता है।

पीठ ने कहा, ‘हमें चीजों को एक व्यावहारिक मॉडल से देखना होगा। ऐसी कई बातें हैं जिन पर हमें विचार करना होगा। मान लीजिए कोई शक्तिशाली व्यक्ति है जो यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके खिलाफ पुलिस द्वारा मामला दर्ज न किया जाए। यदि कोई विधेय अपराध नहीं है, तो यह अधिनियमन (पीएमएलए) के पूरे उद्देश्य को विफल कर देगा। ऐसे कानूनों से निपटने के लिए हमारे पास कोई कठोर फॉर्मूला नहीं हो सकता है।”

इससे पहले भारी मात्रा में अवैध धनशोधन संबंधी खुफिया सूचना प्राप्त होने पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मामले की त्वरित जांच पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा था कि ‘नकदी की गति प्रकाश से ज्यादा तेज होती है।’

‘प्रकाश से ज्यादा तेज है नकदी की गति’

मंगलावर को न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ऐसी परिस्थिति का हवाला दिया, जहां प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को अवैध तरीके से धन के लेन-देन की कार्रवाई योग्य सूचना मिले, और सवाल किया कि क्या उसे (ईडी को) धन शोधन की जांच शुरू करने से पहले पुलिस या एन्य एजेंसी द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने का इंतजार करना चाहिए। पीठ ने कहा, ”नकदी की गति प्रकाश (रोशनी) से तेज होती है। अगर एजेंसी (ईडी) प्राथमिकी दर्ज होने का इंतजार करेगी तो साक्ष्य खत्म हो सकते हैं।”

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