वट सावित्री व्रत, शनि जयंती और सोमवती अमावस्या, एक ही दिन तीन पर्व, जानें क्या करें कि आपको भी मिले फल

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इस माह का 30 मई खास है। इस दिन वट सावित्री के साथ शनि जयंती व सोमवती अमावस्या भी है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसा संयोग करीब 30 साल के बाद देखने को मिल रहा है। वट सावित्री के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं।

इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। जगन्नाथ मंदिर के पंडित सौरभ कुमार मिश्रा ने बताया कि वट सावित्री 30 मई को है। इसी दिन शनि जयंती और सोमवती आमावस्या भी पड़ रहा है। इस दिन व्रत रखने से शनि देव की कृपा प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है।

सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया था। इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में वट सावित्री की पूजा होगी।

ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि का हुआ था जन्म

ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जायेगी। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। इसी कारण इस दिन जन्मोत्सव के रूप में शनिदेव की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि शनि देव इंसान को उसके कर्मों के हिसाब से ही फल देते हैं। कर्म फलदाता शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनि जयंती का दिन काफी खास माना जाता है। क्योंकि इस दिन विधिवत तरीके से पूजा करने से कुंडली से शनि दोष, ढैय्या, साढ़ेसाती से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही शनिदेव की कृपा होने से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है। मंदिर में सुबह पूजा-अर्चना होगी। संध्या समय मंदिर परिसर में 11 सौ दीपक जलाये जायेंगे। इसके बाद भंडारा का आयोजन होगा। उन्होंने बताया कि पिछले साल कोरोना के कारण वृहद रूप से पूजा-अर्चना नहीं हो पायी थी।

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