गणतंत्र दिवस बीटिंग रिट्रीट से क्यों हटाई गई महात्मा गांधी की पसंदीदा धुन ‘एबाइड विद मी’; ये रही वजह

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महात्मा गांधी के पसंदीदा धुन में से एक ”एबाइड विद मी” को इस साल 29 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस ‘बीटिंग रिट्रीट’ समारोह से हटा दिया गया है। सरकार सूत्रों ने कहा कि इस साल देश ऐतिहासिक आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है।

इसलिए बीटिंग द रिट्रीट में सिर्फ और सिर्फ भारतीय धुनों को बजाना ही अधिक उपयुक्त माना गया है। सूत्रों के मुताबिक सरकार और सेना बीटिंग द रिट्रीट में अधिकतम संख्या में भारतीय धुनों को शामिल करना चाहती है। इसी वजह से इस साल सिर्फ स्वदेशी धुनें ही लिस्ट में हैं।

इससे पहले केंद्र ने 2020 में इस समारोह से ‘एबाइड विद मी’ को हटाने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में हंगामे के बाद इसे बरकार रखा गया। बता दें कि 1847 में स्कॉटिश एंग्लिकन कवि और भजन विज्ञानी हेनरी फ्रांसिस लिटे द्वारा लिखित ‘एबाइड विद मी’ 1950 से बीटिंग रिट्रीट समारोह का हिस्सा था।

भारतीय सेना ने शनिवार को जारी एक विवरण पुस्तिका से इसकी जानकारी मिली। विवरण पुस्तिका में कहा गया है कि इस साल के समारोह का समापन ‘सारे जहां से अच्छा’ के साथ होगा।

इस साल बजाई जाएंगी 26 धुन

सेना की ब्रोशर में बताया गया है कि 29 जनवरी को विजय चौक पर बीटिंग रट्रिीट समारोह में इस साल 26 धुनें बजाई जाएंगी। इनमें ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ के साथ ही ‘हे कांचा’, ‘चन्ना बिलौरी’, ‘जय जनम भूमि’, ‘हिंद की सेना’ और ‘कदम कदम बढ़ाए जा’ जैसे गीत शामिल हैं। बीटिंग रट्रिीट समारोह में 44 बिगुल वादक, 16 तुरही बजाने वाले और 75 ढोल वादक भाग लेंगे।

क्यों और क्या होती है बीटिंग रिट्रीट?

‘बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी’ सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। दुनियाभर में बीटिंग रिट्रीट की परंपरा रही है। लड़ाई के दौरान सेनाएं सूर्यास्त होने पर हथियार रखकर अपने कैंप में जाती थीं, तब एक संगीतमय समारोह होता था, इसे बीटिंग रिट्रीट कहा जाता है। भारत में बीटिंग रिट्रीट की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स के डिस्प्ले के साथ पूरा किया था। समारोह में राष्ट्रपति बतौर चीफ गेस्ट शामिल होते हैं।

विजय चौक पर राष्ट्रपति के आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है। इसी दौरान राष्ट्रगान जन गण मन होता है। तिरंगा फहराया जाता है। थल सेना, वायु सेना और नौसेना, तीनों के बैंड मिलकर पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं।

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